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अ॒यम॒ग्निः स॑ह॒स्रिणो॒ वाज॑स्य श॒तिन॒स्पति॑: । मू॒र्धा क॒वी र॑यी॒णाम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayam agniḥ sahasriṇo vājasya śatinas patiḥ | mūrdhā kavī rayīṇām ||

पद पाठ

अ॒यम् । अ॒ग्निः । स॒ह॒स्रिणः॑ । वाज॑स्य । श॒तिनः॑ । पतिः॑ । मू॒र्धा । क॒विः । र॒यी॒णाम् ॥ ८.७५.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:75» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:24» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

पुनः परमात्मदेव का महिमा दिखलाया जाता है।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वाधार जगदीश ! (देवहूतमान्) प्राणियों को अतिशय सुख देनेवाले (अश्वान्) सूर्य्यादि लोकों को (युक्ष्व+हि) अच्छे प्रकार कार्य्य में नियोजित कीजिये। यहाँ दृष्टान्त कहते हैं (रथाः+इव) जैसे रथी स्वकीय घोड़ों को सीधे मार्ग पर चलाता है। हे ईश आप (होता) महादाता या हवनकर्ता हैं। (पूर्व्यः) सबके पूर्व या पूर्ण हैं, वह आप (नि+सदः) हमारे हृदय में बैठें ॥१॥
भावार्थभाषाः - वह जगदीश सूर्य्यादि सम्पूर्ण जगत् का शासक दाता और पूर्ण है, उसको अपने हृदय में स्थापित कर स्तुति करें ॥१॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनरपि परमात्मदेवस्य महिमा प्रदर्श्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने=सर्वाधारेश ! देवहूतमान्=देवानां प्राणिनां हूतमान्=दातृतमान्। अश्वान्=सूर्य्यादिलोकान्। युक्ष्व= सुकार्य्ये नियोजय। अत्र दृष्टान्तः। रथीरिव=यथा रथी अश्वान् नियोजयति। हे भगवन् ! त्वं होता=दाता। पूर्व्यः=पूर्णो वा। नि+सदः=उपविश ॥१॥